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________________ एकसठवां बोल MAMI चारित्रसम्पन्नता शास्त्र में कहा है कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र--यह रत्नत्रय हो मोक्ष का मार्ग है । तत्त्वार्थसूत्र मे भी कहा है'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग ।' अर्थात--सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र-- तीनो मिलकर मोक्ष का मार्ग है । ज्ञान से वस्तु जानी जाती है, दर्शन से जानी हुई वस्तु पर श्रद्धा की जाती है और तब तदनुसार आचरण किया जाता है । गौतम स्वामी और भगवान् महावीर के बीच जो प्रश्नोत्तर हुए हैं, उन पर विस्तारपूर्वक विचार किया गया है । अब गौतम स्वामी चारित्र के विषय मे भगवान से प्रश्न करते हैं .-- मूलपाठ प्रश्न-चरित्तसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- चरित्तसपन्नयाए सेलेसीभाव जणयइ. सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ, तो पच्छा सिंज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ।।६१॥
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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