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साठवां बोल-२६५
जैसे महानिर्ग्रन्थ के ससर्ग में आने से उन्हें सम्यक्त्र की प्रप्ति भी हुई । राजा श्रेणिक सम्यक्त्व के प्रभाव से कसा प्रात्मलाभ प्राप्त कर सके इस सम्बन्ध मे ग्रन्यो मे कहा है.न सेणियो पासितया बहुस्सुमो,
न यावि पन्नत्तिधरो न वायगो । सो आगमिस्साइ जिणो भविस्सइ,
समिक्ख पन्नाइ वर खु दसणं ॥ प्रर्थात्-- राजा श्रेणिक एक नवकारसी भी नहीं कर सका था । वह बहश्रुत भी नही था। सापना उसने धारण नही किया था और न वह वाचक व्याख्याता ही था। फिर भी शुद्ध सम्यक्त्व के कारण वह भविष्य में पद्मनाम तीर्थदूर होगा।
श्रेणिक राजा पहले तो धर्म की पावश्यकता ही स्वीकार नहीं करता था । किन्तु भगवान् महावीर के तथा महानिर्ग्रन्थ अनाथी मुनि के ससर्ग मे आने के बाद उसमे वज्रलेप जैसी नि गक श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी । धर्म के प्रति निश्चल श्रद्धा होने के कारण ही श्रेणिक आत्मकल्याण साध सके ।
राजा श्रेणिक सम्यक्त्व मे बहुत दड थे । उनकी धर्मदढना की प्रशसा सुनकर एक देव ने विचार कियाआखिर तो श्रेणिक एक मनुष्य है । मनुष्य को धर्म से विचलित करना कौन बड़ी बात है। एक दिन जब श्रेणिक राजा बाहर घूमने के लिए निकला तो वह देव साघु के वेष मे शिकारी का स्वाग सजकर, शकित होता हुआ राजा के पास से निकला । राजा के कर्मचारियो ने साधु वेषधारी शिकारी