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________________ साठवां बोल-२८६ क्ष यिक सम्यक्त्व प्राप्त करता है । क्षायिक सम्यक्त्व वाला पुरुष या तो उसी भव मे मोक्ष प्राप्त करता है या भवस्थिति अधिक होने पर अधिक से अधिक तीन भव में केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करता है। क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन तो उत्पन्न होकर नष्ट भी हो जाता है, किन्तु क्षायिक सम्यग्दर्शन एक बार उत्पन्न होने के पश्चात् फिर नष्ट नही होता । क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होने से परम ज्ञान और परम दर्शन प्राप्त करके दर्शनसम्पन्न व्यक्ति आनन्दपूर्वक क्षायिक ज्ञानदर्शन में रमण करता है। सम्यक्त्व के तीन भेद हैं: - (१) उपशम गुण से प्राप्त होने वाला, (२) क्षयोपशम गुण से प्राप्त होने वाला और (३) क्षायिक गुण मे प्रकट होने वाला सम्यक्त्व । इन तीनो प्रकार के सम्यक्त्वो मे किनना अन्तर है, यह बात पानी का उदाहरण देकर समझाई जाती है । एक पानी ऐसा होता है जो मलीन होता है परन्तु दवा डालने से उसका मैल नीचे जम गया है । दूसरे प्रकार का पानी ऐसा होता है कि वह ऊपर से तो स्वच्छ दिखाई देता है परन्तु उसमे मैल साफ नजर आता है । तीसरे प्रकार का पानी वह है जो पहले मलीन था किन्तु उसका मैल नीचे बैठ जाने पर निर्मल पानी नितार कर अलग कर लिया गया है । इस तीसरे प्रकार के पानी के फिर मलीन होने की सम्भावना नही है । इसी प्रकार मिथ्यात्व के विपाक मे शान्त हो किन्तु प्रदेश मे उदयाधीन रहता हो, वह क्षयोपशम से प्राप्त सम्यक्त्व कहलाता है । मिथ्यात्व का उदय जब प्रदेश और विपाक-- दोनो मे शान्त हो तब उपशम सम्यक्त्व होता है । क्षायोपमिक सम्यक्त्व से प्रौपश मिक
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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