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________________ ___२७४-सम्यक्त्वपराक्रम (५) कर्म के कारण आत्मा और शरीर का सयोग हुआ है। कर्म का भी प्रात्मा के साथ सयोग अनादि से है । ऐसा कदापि नहीं हो सकता कि आत्मा कभी कर्म रहित हो गया था और फिर कर्म से युक्त हो गया हो । आत्मा एक बार कर्म रहित हो जाने के बाद भी फिर कर्म से लिप्त हो जाता है, ऐसा मान लिया जाये तो सिद्ध भगवान् भो जो कर्मों से मर्वथा मुक्त हो चुके हैं, फिर कर्मों से लिप्त हो जाएँगे । वास्तव मे कर्म और आत्मा का सयोग-सम्बन्ध अनादि काली न होने पर भी, दूध और घो तथा धातु और पाषण की तरह दोनों अलग अलग हो सकते हैं। आत्मा और कर्म का बध है और इसी कारण आत्मा का मोक्ष होता है अर्थात् आत्मा और कर्म का सम्बन्ध टूट जाता है। साख्यमत का कथन है कि आत्मा बध रहित अर्थात् सिद्ध, वुद्ध, मुक्त है , उनके मतानुसार आत्मा के साथ कर्म का बध होना ही नही है। किन्तु यदि आत्मा का किमी के साथ बध न माना जाये तो आत्मा का मोक्ष भी नहीं हो सकता। क्योकि जब वव ही न होगा तो मोक्ष कैसे होगा? बघ है तभी मोक्ष भी है । मोक्ष का अर्थ ही बघन का छूटना है । जहा बन्धन ही न होगा वहां उसका छूटना किस प्रकार कहा जा सकता है । कहने का आशय यह है कि आत्मा और कर्म का सयोग अनादिकालीन होने पर भी टूट सकता है । आत्मा कर्म के सयोग से पृथक् हो सकता है । आत्मा और कर्म का जो सयोग अनादिकालीन कहा गया है, वह प्रवाह की अपेक्षा है । जैसे नदी का बहता पानी देखकर कहा जाता है कि यह वही पानी है जो कल था । परन्तु वास्तव में कल जो पानी था, वह तो वह गया है। फिर भी पानी के
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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