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________________ १६०-सम्यक्त्वपराक्रम (५) उत्तर मन को समाधि में स्थापित क'ने से एकाग्रता उत्पन्न होती है । एकाग्रता उत्पन्न करके जीव ज्ञान की पर्यायें उत्पन्न करता है। ज्ञान की पर्याये उत्पन्न करके सम्पक्त्व की विशुद्धि करता है और मिथ्यात्व का नाश करता है। - व्याख्यान मन का निरोध करने की बात करना जितना सरल है, निरोध करना उतना सरल नही है । जहाँ तक मन का निरोध नहीं किया जाता अर्थात् मन को समाधिस्थ नहीं किया जाता तब तक मन एकाग्र नही हो सकता । जब मन मे एकाग्रता आ जाये तभी समझना चाहिए कि मन समाधिस्थ हो गया है अर्थात् मन का निरोध हो गया है । मन को बहिर्मुख न होने देना-अन्तर्मुख बनाना और आत्मसमाधि मे सलग्न करना ही मन का समाधारण है । जब मन मे ऐसी समाधि होती है तब मन एकाग्र बनता है और अज्ञानशक्ति नष्ट होकर ज्ञान की पर्याये (शक्तिया) उत्पन्न होती हैं । ज्ञानशक्ति उत्पन्न होने पर सम्यक्त्व की विशुद्धि और मिथ्यात्व का नाश होता है । सक्षेप मे मन की समाधि से एकाग्रता उत्पन्न होती है. एकाग्रता से ज्ञानशक्ति उत्पन्न होती है । ज्ञानशक्ति से मिथ्यात्व का नाश और सम्यक्त्व की विशुद्धि होती है । इस प्रकार भगवान् महावीर ने मन की समाधि का जो फल बतलाया है उसे दृष्टि मे रखकर मन का निरोध करने का प्रयत्न करना चाहिए और इस बात की संभाल रखनी चाहिए कि मन किसी खराव काम मे प्रवृत्त न हो।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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