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________________ चौपनवाँ बोल वचनगुप्ति मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतएव यहा सामान्य रूप से गुप्ति के विषय मे विचार किया गया है । मानव शरीर मे मन की प्रधानता होने से सर्वप्रथम मन की गुप्नि करना आवश्यक है। जब तक मनोगुप्ति नही की जाता तब तक वचनगुप्ति मोर कायगुप्ति नही हो सकती । . __वचन की गुप्ति से अर्थात् वाणी पर काबू रखने से जीव को क्या लाभ होता है, यह जानने के लिए गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा :-- मलपाठ प्रश्न- घयगुत्तयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर- वयगुत्तयाए निग्वियारत्तं जणयइ, निग्वियारे जीवे वइगुत्ते प्रज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भव ॥५४॥
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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