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________________ २२४-सम्यक्त्वपराक्रम (५) जमे लिखने के लिए कलम करण है, उसी प्रकार कलम बनाने के लिए चाकू करण है । तुम लोग बम्बई जाते हो । जिस साधन से तुम बम्बई जाते हो वह माधन चाहे रेलगाढी हो, मोटर हो या हवाई जहाज हो, करण है। इसी तरह आत्मा के लिए इन्द्रिया करण हैं । यात्मा चाहे तो इन्द्रियो द्वारा ससारवृद्धि भी कर सकता है और चाहे तो ससार से मुक्त होने के काम भी कर सकता है। भगवान कहते हैं- करणसत्य से करण मे सत्यता माती है और जव करण मे सत्यता आती है तो जीव जैसा कहता है वैसा ही करके दिखा देता है । अगर उससे कोई काम नही हो सकता तो वह स्पष्ट कह देता है । जैसे आनन्द आदि श्रावको ने भगवान् से कहा था कि हम में संयम धारण करने की शक्ति नहीं है, मगर हम जो बात स्वीकार करेंगे, उसका पूर्ण रूप से पालन करेंगे। करण में सत्यता होगी तो कार्य भी बरावर सिद्ध होगा । चाकू अच्छा होगा तो कलम भी अच्छी बन सकती है । अगर चाकू ही अच्छा न हुआ तो खराव च कू से कलम की नौक ठीक नही निकलेगी। इसी भाति जिस व्यक्ति मे करणसत्य होगा, वह जैसा बोलेगा वैसा ही कर दिखाएगा । करण मे सत्यता प्रा जाने से कार्य में सरलता आए बिना नही रहती । जव करण में सत्यता आ जायेगी तो हाथी के दात खाने के और तथा दिखाने के और, इस लोकोक्ति के अनुसार कहना कुछ, करना कुछ की भिन्नता नही रह सकती। फिर तो जैसा उच्चार होगा वैसा ही आचार होगा । अर्थात् वाणी तथा व्यवहार मे भिन्नता नही रह जाएगी । आजकल के लोग प्रायः उच्चार के अनुसार आचार
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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