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________________ २१८-सम्यक्त्वपराक्रम (५) विषय ग्रहण कर सकती है । इस प्रकार आत्मा सूक्ष्म होने पर भी इन्द्रियो का स्वामी है। आत्मा की विद्यमानता में ही प्रत्येक काम हो सकता है। राजा भी तभी तक दण्ड दे सकता है जब तक शरीर में आत्मा है । आत्मा के निकल. जाने पर राजा भी शरीर को दण्ड नही देता । आत्मा-विहीन,शरीर या तो भस्म कर दिया जाता है या जमीन मे गाड दिया जाता है । - पुरोहित के पुत्र कहते है - आत्मा स्थूल, आँखो से देखा नहीं जा सकता । वह अन्य इन्द्रियो द्वारा भी नहीं जाना जा सकता । वह आत्मा अमूर्त है । अमूर्त आत्मा मूर्त इन्द्रियो द्वारा किस प्रकार जाना जा सकता है ? आत्मा भले ही इन्द्रियग्राह्य नहीं है, फिर भी उसका अस्तित्व मानना पडता है। आत्मा को माने बिना काम नही चल सकता। परन्तु बहुत से नासमझ लोग नास्तिको की. कल्पित बातो मे इसलिए फंस जाते हैं कि आत्मा न मानने से दान, धर्म, तप, शील आदि कुछ भी नही. करना पडता और जीवन विषयभोग मे व्यतीत हो जाता है । इस प्रकार षियानन्द मे फंस कर लोग नास्तिकता स्वीकार कर लेते हैं । परन्तु जिन महापुरुषो ने विषयसुख तथा ससार-सम्पदा का त्याग किया है उन पर अविश्वास करके .आत्मा को स्वीकार न करना और जो विषयसुख के दास बने हुए हैं उनके कथन पर विश्वास करके, विषयलोलुप वनकर जीवन को नष्ट भ्रष्ट करना कहा तक उचित है ? इस प्रश्न पर गम्भीर. विचार करना आवश्यक है। ___देवभद्र और यशोभद्र अपने पिता भगु पुरोहित से कहते हैं - पिताजी ! आप आत्म-तत्त्व को भूल कर ही ऐसा
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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