________________
२१०-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
व्यात्मामा आयात्मा का
जितात्मा है । मापने क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चतुर्विध कपायो को जीत कर आत्मा पर विजय प्राप्त की है । द्रव्यात्मा, कपायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा, इन आठ प्रकार की आत्माओ मे से केवल एक कपायात्मा को जीत कर पापने आत्मविजय प्राप्त की है। वास्तव में कपाय ही समार है, क्योकि चार कपाय ही ससार को बढाने वाले है । जो व्यक्ति चार कपायो को जीत लेता है वही आत्मविजय प्राप्त करके ससार का उच्छेद कर सकता है।
सुना जाता है कि यूरोप मे युद्ध की तैयारियां हो रही हैं । पाश्चात्य लोग युद्ध की तैयारी कर रहे है तो तुमने भी क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी आन्तरिक शत्रुयो को जीतने की तैयारी की है या नहीं ? वाह्य युद्ध की अपेक्षा आन्तरिक युद्ध करना उचित है । वाह्य युद्ध करने में मान व हिंसा, रक्तपात तथा धन-जन की हानि तो होती ही है, साथ ही दूसरो को लूटने को, पददलित करने की मनोवृत्ति-धेरवृत्ति भी हृदय में उत्पन्न होती है । ज्यो-ज्यो वरवृत्ति बढती जायेगी, त्यो त्यो ससार मे अगाति का साम्राज्य बढता जायेगा और परिणाम यह होगा कि ससार मे सुग्व और गाति अदृश्य हो जाएगी । इससे विप रीत अगर वैग्वृत्ति का त्याग करके क्रोध, मान, माया और लोभ को, जिनके कारण संसार मे विध्वमकारी विप्लव जागता है, जीतने के लिए कपायात्मा के साथ दया, क्षमा आदि यहिमात्मक शस्त्रो द्वारा आन्तरिक युद्ध किया जाये तो दूसरों को लूटने की, पददलित करने की जो मलीननि है, उस पर विजय प्राप्त किया जा सकता है । वर पर