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________________ पचासवां बोल-२०१ शब्दार्थ प्रश्न-भावसत्य ( शुद्ध अन्तःकरण ) से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ? उत्तर-भावसत्य से हृदयविशुद्धि होती है और विशुद्ध अन्त करण बाला जीव ही अरिहत प्रभु द्वारा प्रतिपादित धर्म की आराधना कर सकता है और उस धर्म की पाराधना मे उद्यत होकर परलोक में भी धर्म का आराधक बनता है। व्याख्यान भावसत्य के सम्बन्ध में विशेष विचार करने से पहले यह विचार कर लेना आवश्यक है कि भावसत्य किसे कहते हैं ? सत्य के चार भेद हैं । एक सत्य तो सिर्फ ऊपरी होता है । यह सत्य वास्तव मे सत्य नही है । यह पहला सत्य ऊपर से तो सत्य मालूम होता है पर भीतर से सत्य रूप नही होता । दूसरा सत्य ऐसा होता है कि वह ऊपर से भी सत्य मालूम होता है- और भीतर से भी सत्य ही होता है । तीसरा सत्य वह है जो भीतर से तो सत्य रूप होता है मगर ऊपर से सत्य रूप नही होता । चौथा सत्य भीतर से भी सत्य रूप नही होता और बाहर से भी सत्य रूप नही होता । फिर भी उसे सत्य कहा जाता है । सत्य के यह चार अग अर्थात् प्रकार हैं । श्रीस्थानागसूत्र में इस विषय मे एक उदाहरण देकर समझाया गया है । एक घड़ा ऐसा होता है जिसके भीतर विष भरा होता है पर उसका ढक्कन अमृतमय होता है।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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