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________________ १९६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) अभिमान करते हैं मानो अभिमान के मारे फूले नही समाते हैं और अगर नये बूट के साथ सुन्दर तथा नवीन वस्त्र भी पहन लिये हो तब तो कहना ही क्या है ! उस समय तो अभिमान की सीमा ही नही रहती । ऐसी दशा मे अगर वह व्यक्ति उच्च जाति मे या उच्च कुल मे पैदा हुआ हो और फिर धनसत्ता, वैभव तथा प्रभुता प्राप्त हो तब तो अभिमान का कहना ही क्या है | परन्तु किसी का अभिमान सदा टिक नही सकता । अभिमान से सदा सर्वदा हानि ही होती है । जव राजा रावण का भी अभिमान न टिक सका तो फिर साधारण आदमी का अभिमान न टिकने मे आश्चर्य ही क्या है ? अभिमान एकान्तत हानिकारक है और इसी कारण उसे 'मद' कहते हैं । मद्य और दूध मे कितना अन्तर है ? कही-कही सरकार ने मद्य का तो निषेध किया है मगर यह नहीं सुना गया कि किसी सरकार ने कही दूध का भी निषेध किया है । मद्य से हानि होती है और दूध से लाभ होता है । तुम लोग शराव को ही मद्य मानते हो परन्तु ग्रन्थकार मद की व्याख्या करते हुए कहते हैं. बुद्धि लुम्पति यद् द्रव्यं मदकारि तदुच्यते । अर्थात्- जिस पदार्थ के सेवन से बुद्धि विकृत होती है, वे सब पदार्थ मदकारी हैं। अभिमान से भी बुद्धि विकृत होती है, अतएव वह भी एक प्रकार का मद है । लोगो को जाति या कुल का भी मद होता है। पर शास्त्रकार कहते हैं कि जाति, कुल वगैरह का अहकार भी एक प्रकार का मद ही कहलाता है सुज्ञ पुरुपो का कथन है कि जो जातिसपन्न और कुलमपन्न हो उन्हे नम्र तथा निरभिमान होना चाहिए । उच्च जाति वाला और उच्च
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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