SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनचासवां बोल मृदुता शास्त्रकारो ने जगत के जीवो को ससार सागर पास करने के लिए धर्म-नौका मे बैठने का आह्वान किया है । धर्म का अर्थ ही है-धारण करने वाला । जो पतितो का उद्धार करे, डूबने वालो को तारे, उसी को धर्म कहते हैं । यह धर्म दस प्रकार का है । धर्म के क्षमा आदि दस भेद हैं । क्षमा रखना, निर्लोभता धारण करना, सरलता रखना आदि आत्मोन्नति के मार्ग हैं। इन गुणो से क्या लाभ होता, है, इस सम्बन्ध मे पहले विचार किया जा चुका है। जो आत्मा विनम्र होता है. वही वास्तव मे सरल बन सकता है । अतएव अब मृदुता-मार्दव या विनम्रता गुण पर विचार किया जाता है। मार्दव क्या है और उससे जीव को क्या लाभ होता है, इस विषय मे गौतम स्वामी महावीर भगवान् से प्रश्न करते हैं: मूलपाठ प्रश्न मद्दवयाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ?
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy