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अड़तालीसवां बोल-१८३
कोई प्रयल सफल न हुआ तो उन्होने बेगम को भरमा कर अपनी मनोकामना पूरी करनी चाही । कुछ मुसलमान बेगम के पास पहुचे और बोले-'आपका भाई शेख हुसेन हर तरह से काबिल है, फिर भी उसे दीवान न बनाकर एक हिन्दू काफिर को सल्तनत का दीवान बनाया गया है ! क्या यह ठीक कहा जा सकता है ?
बेगम मुसलमानो के भ्रमजाल में फंस गई। जब चादशाह महल मे गए तो बेगम ने तिरिया-चरित द्वारा उन्हें चचन मे बाध लिया। बादशाह ने बेगम से कहा तुम चाहती क्या हो ? जो चाहत्ती हो, बताओ । मैं वही देने को तैयार हू ।' बेगम बोली- तुम मेरे भाई की कई बार तारीफ किया करते हो । अगर दरअसल वह होशियार है तो उसे दीवान न बनाकर एक हिन्दू काफिर को क्यो दीवान बनाया है ? बादशाह बेगम का मतलब समझ गया। उसने मन ही मन विचार किया बेगम को इस बात का यकीन करा देना चाहिए कि दरअसल उसका भाई कितना काविल है ! इस प्रकार विचार कर बादशाह ने कहा -तुम्हारा कहना सही है । मुझसे भूल हुई कि अपने ही घर मे शेख हुसेन जैसे काबिल शख्स के होते हुए भी मैंने एक हिन्दू को सल्तनत का वजीर बना दिया ! मैं कल शेख हसेन को बडा वजीर बना देने का इन्तजाम करूंगा।
जब बादशाह राजमहल मे से चले गये तो वे धूर्त मुसल्मान फिर बेगम के पास आए। पूछने लगे . 'क्या हुआ ?' वेगम ने उत्तर दिया- 'बम काम हो गया है । कल मेरा भाई शेख हुसेन प्रधान बना दिया जायेगा ।' यह सुनकर वे मुसलमान प्रसन्न हुए और कहने लगे चलो,