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________________ १७०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) कहते हैं- जिसमें निर्लोभता होती है उसे अर्थलोलुप लोग छोड देते हैं । निर्लोभ व्यक्ति अर्थलोभी लोगों का अप्रार्थनीय बन जाता है। धन के लोभी भली-भाति जानते हैं कि जिनके पास कुछ भी नही है अथवा जो निर्लोभ हैं, उनसे कुछ मिलने की आशा नही ! अतएव वे निर्लोभ व्यक्ति का पिंड छोड देते हैं। ससार मे प्रायः धनिको को ही सताया जाता है । राजा इक्षुकार की पत्नी कमलावती ने अपने पति से कहा था - सामिसं कुललं दिस्स बज्झमाण निरामिसं । प्रामिसं सव्वं मुज्झित्ता विहरिस्सामि निरामिसा ॥ - श्री उ० १४ अ० ४६ गा० अर्थात् जब किसी पक्षी के पास मास होता है तब दूसरे पक्षी, जिनके पास मास नही होता, वे उस पर टूट पड़ते है । मास के कारण ही उस पक्षी पर दूसरे पक्षी टूट पडते है । अगर मास वाला पक्षी मास का त्याग कर दे तो दूसरे पक्षी उसे सताए गे नही । इसी प्रकार जो पुरुष स्वय धन सम्पदा का त्याग कर देता है, उसे राजा-चोर आदि अर्थलोलुप लोग नही सताते । जव लुटेरा किसी मनुष्य को लूटता है या मारता है तो यह कहा जाता है कि लुटेरा या चोर लोगों को दुःख देता है। मगर इस बात का विचार करो कि वास्तव में दु.ख कोन देता है । चोर या लुटेरा दुःख देता है अथवा धन को ममता दुःख देती है ? धन की ममता के कारण ही दु.खो का उद्भव होता है धन की ममता का त्याग कर देने पर दुःख की उत्पत्ति नहीं होती, बल्कि सुख और शान्ति की प्राप्ति होती है।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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