________________
पैतीसवाँ बोल-७
जाने पर भी उसकी शक्ति का नाश नही होता। इसके विपरित यदि उपवास विधिपूर्वक किया जाये और उपवास समाप्त होने पर शीघ्र ही आहार की वृद्धि न की जाये तो शरीर की कृशता के दूर हो जाने के साथ ही साथ शरीर के रोग भी समूल नष्ट हो जाएगे । यह वात कपोलकल्पित नही, अनुभूत है । जिसे इस कथन मे सदेह हो वह अपना वजन करके कम से कम एक दिन का उपवास कर देखे और दूसरे दिन फिर वजन करे । उमे विश्वास हो जायेगा कि उपवास करने से किसी भी प्रकार शारीरिक शक्ति, क्षीण नहीं होती।
उपवास से शरीर कृश हो जाता है और रोग से भी शरीर कृश हो जाता है । मगर दोनो प्रकार की कृशता में बहुत अन्तर है । लोग उपवास के अभ्यासी नही, दवा के अभ्यासी है और इसी कारण उन्हे उपवास करने से शरीर के निर्बल, निस्तेज और कृश हो जाने की भ्रान्ति बनी हुई है । वास्तव मे उपवास तो शरीर को स्वस्थ बनाने की एक अमोघ प्राकृतिक औषव है । अगर इस प्राकृतिक औषध का महीने में छह बार सेवन किया जाये तो शरीर मे किसी प्रकार का रोग ही न रहने पाए और न डाक्टर की शरण मे जाना पडे । मगर जब हम उपवास करने का उपदेश देते हैं तो तुम हमारे कथन की उपेक्षा करते हो और जब बीमार पडते हो और डाक्टर ६-७ दिन के लिए लघनउपवास करने की सलाह देता है तब इच्छा या अनिच्छा से भी तुम्हे उपवास करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अगर प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के नियमो का बराबर पालन करे और स्वेच्छापूर्वक प्रतिमास ४-६ उपवास करने की