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१४२-सम्यक्त्वपराक्रम (४) को जानते न हो। ऐसी सब बातें जानते हए भी सिर्फ जगत के जीवो के हित के लिए ही उन्होने क्षमा से होने वाले लाभ के विषय में भगवान से प्रश्न - पूछा है । गौतम स्वामी और भगवान महावीर के बीच के प्रश्नोत्तर को अगर तुम एकाग्रचित्त होकर सुनोगे तो इनमे रहे हए रहस्य को समझ सकोगे । तुम जब अविक्षिप्त चित्त से शास्त्र की बातसुनोगे तो ही तुम्हें शास्त्रश्रवण का यथार्थ लाभ प्राप्त हो सकेगा।
क्षमा गुण मे महान शक्ति विद्यमान है। परन्तु इस शक्ति को प्राप्त करने के लिये पात्र बनने की आवश्यकता है । पात्र बने बिना कोई भी वस्तु ग्रहण नही की जा सकती। गुणो को धारण करने के लिए पात्रता प्राप्त करना चाहिए। आत्मा क्षमा द्वारा गुणो को ग्रहण करने का और गुणों को धारण करने का पात्र बनता है। इसीलिए श्री दशवकालिक
सत्र में कहा हवीसमा मुणो ह
मान बन
पुढवीसमा मुणी हवेज्जा। अर्थात् हे मुनि । तुम पृथिवी के समान बनो ।
मुनियो को पृथिवी के समान बनने के लिए क्यो कहा गया है ? इसलिए कि पृथ्वी सब को श्राधार देती है । ससार में एक भी वस्तु ऐसी नही, जो पृथ्वी का प्राधार लिये बिना टिक सकती हो । पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को आधार देती है। इसी प्रकार क्षमा भी प्रत्येक छोटे-बड़े गुणो को माधार देती है । क्षमा के विना प्रात्मा मे कोई भी गुण नहीं टिक सकता । मोक्ष के मार्ग पर चलने में क्षमा पाथेय के समान तो है ही, परन्तु ससार-व्यवहार में भी क्षमा की अत्यन्त आवश्यकता है । जो मनुष्य सहनशील-क्षमाशील नहीं होता, उसमें व्यावहारिक गुण भी नहीं टिक सकते ।