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________________ १२८-सम्यक्त्वपराक्रम (४) श्रुतज्ञान के आश्रित हैं। इस प्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र मे सभी गुणो का समावेश हो जाता है । आत्मा जब सर्वगुणसम्पन्न बन जाता है तब उसके लिये कुछ भी करना अवशेष नही रहता । जव आत्मा सव गुणो को प्राप्त करता है, तव जीवात्मा को क्या लाभ होता है, इस विषय मे गौतम स्वामी द्वारा महावीर भगवान् से पूछे गये प्रश्न के उत्तर मे भगवान् कहते हैं कि जीवात्मा सर्वगुणसम्पन्न होने के कारण अपुनरावृत्त गति अर्थात् मोक्ष प्राप्त करता है। पूर्णता का फल पूर्ण ही मिलता है । कहा भी है: पूर्णात् पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते । अपुनरावृत्ति हो जाने अर्थात् पुनर्जन्म का अभाव हो जाने पर शारीरिक अथवा मानसिक किसी भी प्रकार के दुःख उत्पन्न नहीं होते । जो अपुनरावृत्त गति अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, वह शरीर और मन से उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाता है । क्योकि दुखों का कारण शरीर और मन ही है और अपुनरावृत्त गति मे न शरीर रह जाता है और न मन ही । अतएव मुक्तात्मा को शारीरिक और मानसिक दुख भी नहीं सहन करने पडते । उपयुक्त कथन से कोई यह न समझ बैठे कि एकेन्द्रिय जीव मनरहित है अतएव उसे दुख नही होता। एकैन्द्रिय जीव के द्रव्यमन नही होता तो क्या हुआ, अध्यवसायरूप भावमन तो होता ही है । अतएव मन मे सकल्प होने के कारण पैदा होने वाला दुःख एकेन्द्रिय जीव मे भी होता है। दुःख मन मे संकल्प के कारण ही उत्पन्न होता है। कुछ लोगो का कहना है-हमे अमुक प्रकार के दुःख
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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