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________________ बयालीसा बोल-१०३ कषाय आदि प्रमादों से पृथक हो जाता है । साधुलिंग धारण करने से जीवात्मा प्रमाद का सेवन करते हिचकता है और कदाचित् प्रमाद का सेवन करता भी है तो साधुवेष का ध्यान आते ही वह उसका त्याग कर देता है। उदाहरणार्थप्रसन्नचन्द्र ऋषि ने सातवे नरक मे जाने योग्य सकल्प किया था, परन्तु जब उन्होने अपने मस्तक पर हाथ फेरा तब 'मैं साधु है' ऐसा खयाल आते ही वह अपनी मूल स्थिति पर आ गए । वह राजर्षि भी आखिर सुविहित वेष के ही प्रभाव से मूल स्थिति पर आ सके । साधु वेष ने ही उन्हे नरक में जाने से बचाया । इस प्रकार साधुचेष धारण करने से आत्मा लघुता प्राप्त करता है । यद्यपि भगवान् ने यह तो स्पष्ट कहा है कि अगर कोई व्यक्ति साधु का वेष धारण करके भी अपने परिणामो को पवित्र नही रखता तो उसकी मति के अनुसार ही गति होती है, परन्तु साधुवेष बहुत बार अात्मा को स्थिर करने में सहायक बनता है और इसी कारण यह कहा गया है कि साधु वेष धारण करने से आत्मा को लघुत्ता प्राप्त होती है और लघुताशील जीव अप्रमादी बनता है । यद्यपि स धुवेष धारण करते ही प्रमाद सर्वथा नही छूट जाता परन्त वेष प्रमाद से मुक्त होने के मार्ग पर ले जाता है और किसी अवसर पर तो आत्मा को पतित होने से भी बचा लेता है। साधुवेष प्रमादरूपी शस्त्र-अस्त्र के प्रावातो से वचने के लिए बख्तर का काम देता है। कुछ लोग प्राध्यात्मिकता के नाम पर साधवेष आदि की उपेक्षा करते हैं, परन्तु यह उनकी भूल है । भगवान् ने अपने कल्याण के लिए ही साधुवेष धारण का उपदेश दिया है । साधुवेष धारण करने से होने वाले लाभ तो अनुभव 5
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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