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________________ प्रकार और कब हो गई, यह बात जल्दो समझ मे नही । पाती । यह तो निश्चित है कि आत्मा की शक्ति के बिना शरीर मे. यह परिणमन हो ही नहीं सकता। अगर किसी मुर्दा शरीर मे किसी उपाय द्वारा दूध पहुंचा दिया जाये तो क्या वह रसभाग और खलभाग मे परिणत हो सकेगा ? नही । अतएव स्पष्ट है कि आत्मा की शक्ति के बिना शरीर मे किसी प्रकार की परिणमनक्रिया नही हो सकती, उसी प्रकार जीव जब तेरहवे गुणस्थान में जाता है, तब सद्भावप्रत्याख्यान की स्थितिरूप परिणति भी व्यवहार से स्वतः ही होती है, परन्तु निश्चय से तो करने से ही होती है। यह प्रश्न भी अतिम अवस्था से सम्बन्ध रखता है। सद्भाव का प्रत्याख्यान आत्मा के कल्याण के लिए की जाने वाली अतिम क्रिया है । यह क्रिया कर चुकने पर फिर कोई भी किया करना शेष नही रहता-। यह बात हम लोग भले ही देख या जान सकते हो, परन्तु ज्ञानी महात्मा अवश्य देखते और जानते हैं। व्याकरण की दृष्टि से यह प्रश्न कर्ता को भी लागू पडता है कोई बात कर्ता के विपय मे होती है तो कोई भाव के विषय मे । व्याकरण मे कर्तृ प्रयोग और भावप्रयोग मे अन्तर बतलाया गया है, मगर यह अन्तर सब को समझ मे नही आ सकता । कर्तृ प्रयोग और भावप्रयोग का अन्तर बतलाने के लिए एक उदाहरण भी दिया गया है। जैसेदेवदत्त भोजन पकाता है । इस उदाहरण को दो प्रकार से कह सकते हैं । कर्तृप्रयोग मे कहेगे---देवदत्त भोजन पकाता है । भावप्रयोग में कहा जायगा--देवदत्त द्वारा भोजन पकाया जाता है। इस उदाहरण मे कहने का आशय तो एक हो । है, किन्तु एक ही आशय दो प्रकार से कहा जा सकता है।
SR No.010465
Book TitleSamyaktva Parakram 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1973
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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