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________________ अट्ठाईसवाँ बोल-६३ प्राप्ति के लिए अभ्यास-प्रयत्न पुरुषार्थ तो पहले से ही करना पड़ता है। जैसे निशाना ताकने मे अधिक समय नहीं लगता, मगर निशाना ताकने का अभ्यास करने में बहुत समय लगता है और लम्बे समय तक अभ्यास करने के बाद ही ठीक निशाना साधा जा सकता है इसी प्रकार मोक्ष तो थोडे ही समय में हो जाता है परन्तु उसके लिए पहले अधिक अभ्यास करना आवश्यक है । राधावेव करने मे बहुत समय नही लगता है । इसी प्रकार मोक्ष तो पाच लघु अक्षर उच्चारण करने जितने काल में हो जाता है परन्तु इस लक्ष्य को साधने के लिए पहले बहुत समय अभ्यास करना पड़ता है। शास्त्रकार मोक्षरूपी लक्ष्य को साधने का ही उपदेश देते हैं। इस उपदेश का ध्यान रखते हुए मोक्ष साधने का अभ्यास करते रहो । अगर अभ्यास और प्रयत्न ठीक तरह किया जायेगा तो कार्य सिद्ध होते देर नहीं लगेगी। प्रत्येक लक्ष्य को साधने का अभ्यास या प्रयत्न उपयूक्त साधनो द्वारा ही करना चाहिए, विपरीत साधनो द्वारा नही । विपरीत साधनो द्वारा अभ्यास करने से कार्य सिद्ध होने के बजाय बिगड जाता है । भगवान् कहते हैं - तप का फल व्यवदान है और व्यवदान का फल अक्रिया है। अक्रिया दशा प्राप्त होने पर ही आत्मा सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो सकता है। अक्रिय दशा को प्राप्त होने पर आत्मा जब सिद्ध हो जाता है और सिद्ध शब्द मे दूसरे सब शब्द गतार्थ हो जाते हैं तो फिर शास्त्रकारो ने 'सिद्ध' शब्द के साथ 'बुद्ध', 'मुक्त' आदि शब्दो का प्रयोग किस प्रयोजन से किया है ? ऐसा करने मे उनका
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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