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________________ अट्ठाईसवां बोल-८३ शब्दार्थ प्रश्न व्यवदान से, भगवन् । जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर--व्यवदान (पूर्वमचित कर्मों का क्षय करने से) जीवात्मा सब प्रकार को क्रिया से रहित होता है और फिर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर . दुखो का अन्त करता है । विवेचन व्यवदान, तर का साक्षात् और तात्कालिक फल है। फल दा प्रकार का होता है। एक ता अनन्तर अर्थात् तत्काल मिलने वाला फल और दूसरा पारम्परिक फल अर्थात् परम्परा से मिलने वाला । व्यवदान तप का तत्काल मिलने वाला फल है । कर्य समाप्त होते ही जो फल मिलता है वह आनन्तर्य फल कहल ता है और तप का अनन्तर्य फल व्यवदान है । इस प्रकार पूर्वसचित कर्मो का क्षय होना तप का तत्काल मिलने वाला फल है । तप का तात्कालिक फल व्यवदान अर्थात् सचित कर्मों का क्षय होना है, परन्तु पूर्वसचित कर्मों का क्षय करने से जीवात्मा को लाभ क्या होता है ? यह प्रश्न भगवान् से पूछा गया है । गौतम स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने फर्माया-- व्यवदान करने से जीव अक्रिय अवस्था प्राप्त करता है। जहा कोई भी क्रिया करने का निमित्त नही रहता वह अक्रिय दशा कहलाती है । यह अक्रिय अवस्था प्राप्त
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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