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इक्कीसवाँ बोल
परिवर्तना
प्रतिप्रच्छनो का विचार करने के पश्चात् यहां परिवर्तना-परावर्तना (शास्त्र की आवृत्ति ) करने के विषय मे विचार करना है । इस विषय मे भगवान् से यह प्रश्न पूछा गया है.
__ मूलपाठ प्रश्न-परियट्टणयाए णं भंते ! जीवे कि जणेइ ?
उत्तर-परियट्टणयाए णं वजणाई जणेइ, वंजणलद्धि च उपाए ।
शब्दार्थ प्रश्न - भगवन् । सूत्र सिद्धान्त की आवृत्ति करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-बार-बार सूत्र की आवृत्ति करने से विस्मृत ध्यंजन (अक्षर) याद हो जाते हैं और उससे जीव को अक्षरलब्धि और पदानुसारी लब्धि प्राप्त होती है ।