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________________ - पच्चीसवाँ बोल-४६ पर अधा उस प्रा नहीं है । इसा नहीं होता । ही होता है, द्रव्य मन नही । इस कारण असज्ञी जीव किसी वस्तु पर विचार नही कर सकते । अधे के सामने दर्पण रख दिया जाये तो दर्पण मे अवे का प्रतिविम्ब तो पड़ता है मगर अधा उस प्रतिविम्ब को देख नहीं सकता, क्योकि उसके पास देखने का साधन नही है । इसी प्रकार असज्ञी जीव को भाव मन, तो होता है पर द्रव्य मन नहीं होता । इस कारण अमज्ञी जीव वस्तु सामने होने पर भी उसके, संबन्ध मे कुछ विचार नही कर सकते । जब भाव मन के साथ द्रव्य मन होता है तभी वस्तु के विषय मे विचार किया जा सकता है । मन और चित्त पर्यायवाची शब्द है । भगवान् ने कहा है-मन की एकाग्रता से चित्त का निरोध होता है।। प्रश्न खड़ा होता है- मन को किस प्रकार वश में किया जाये और किस प्रकार एकाग्र रखा जाये ? आँखे बद करके वश में की जा सकती है, नाक को दबा कर वश में किया जा सकता है, इसी प्रकार अन्य इन्द्रियो को भी अकुश द्वारा वश मे किया जा सकता है। मगर मन किस प्रकार वश मे किया जाये ? वह एक विकट प्रश्न है। कुछ लोगों ने तो यहा तक कहा है मन एव मनुष्याणां कारण बन्धमोक्षयोः । अर्थात- मन ही मनुष्यो के बन्ध और मोक्ष का कारण है। ___ मन का सकल्प-विकल्प कैसा होता है, यह बात सभी जानते है । मनुष्य हो या पशु, जिसके मन है, उनका मन सकल्प-विकल्प करता ही रहता है । अच्छे या बुरे काम
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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