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________________ ३२-सम्यक्त्वपराक्रम (३) स्त्रियां अपने घर का कचरा साफ करती हैं। क्या इसके बदले वे किसी से पैसा मागती हैं ? माता अपनी सतान की सेवा करती है, पर क्या वह सतान से बदले में कुछ मागती है ? अपने घर का कचरा साफ करने वाली स्त्री और अपनी संतान की सेवा करने वाली माता किसी प्रकार का बदला नहीं मांगतो। इसका कारण यह है कि वे उस कार्य को अपना ही कार्य समझती हैं । जब माता भी अपना कार्य समझ कर विसी प्रकार का बदला नही चाहती तो यह कैसे उचित कहा जा सकता है कि साधु धर्मकथा करने का बदला चाहे ? साधु को समझना चाहिए कि मैं जो कुछ भी कर रहा हू, वह सब आत्मा का कचरा साफ करने के लिए ही कर रहा हू अतएव मुझे अपने कार्य का बदला मागना या चाहना किसी भी प्रकार उचित नहीं है । इतना ही नहीं, वरन् वाह-वाह की भी इच्छा उसे नही करना चाहिए । साधु को निर्जरा के निमित्त ही सब कार्य करना चाहिए। घर का कचरा साफ करने वाली स्त्री यह नही सोचती कि मैं किसी पर एहसान या उपकार कर रही है। इसी प्रकार साधु को भी धर्मकथा करके एहसान नहीं करना चाहिए, न अभिमान ही करना चाहिए । इसी प्रकार साधु को इस बात से दुखी भी नहीं होना चाहिए कि मेरी बात कोई मानता नही है या सुनता नही है । ' कहने का आशय यह है कि जब अपनी आत्मा को पवित्र बना लिया जाये तभी धर्मकथा की जा सकती है। जिस बात का उपदेश देना हो, उसके लिए पहले साधु को स्वय ही सावधान होना चाहिए कि मेरी बात कोई माने या न माने, पर मुझे तो इससे लाभ ही होगा ! उदाहर
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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