SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेईसवां बोल धर्मकथा पिछले प्रकरण मे अनुप्रेक्षा पर विचार किया गया है। यहा धर्मकथा के सम्बन्ध मे विचार करता है। अनुप्रेक्षा करने वाला ही धर्म का उपदेश दे सकता है। लोग समझते हैं, धर्मोपदेश देना सरल काम है, मगर दरअसल यह बडा कठिन काम है। धर्मोपदेश द्वारा लोगो को सन्मार्ग पर भी लाया जा सकता है और कुमार्ग पर भी घसीटा जा' सकता है । गाधीजी ने अपने एक लेख मे 'हिन्दू-धर्म का उपदेश कौन दे सकता है' इस विषय में अपने विचार प्रकट किये थे । गाधीजी के विचार वतलाने से पहले यह बतला देना आवश्यक है कि इस विषय मे शास्त्र क्या कहता है। श्रीसूयगडाग के ग्यारहवे अध्ययन में कहा है . प्रायगुत्ते सया दते छिन्नसोए प्रणासवे । ते सुद्धधम्माक्खति पडिपुण्ण मणेलिसं॥ भगवान् से यह प्रश्न किया गया है कि जिस काल मे वीतराग देव नही होते, उस काल मे उनके मार्ग का उपदेश देने का अधिकारी कौन है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा--अपनी आत्मा को गुप्त रखने वाला,
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy