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________________ २५०-सम्यक्त्वपराक्रम (३) होकर कुछ देर तो उसे घुमाता रहा, फिर मौका देखकर और सोना उठाकर ऐसा भागा कि जागीरदार और उसके आदमी आँखें फाइकर देखते रह गए ।। इस प्रकार ताम्बे से सोना बनाने की ठगविद्या से । अनेक लोग ठगे गये हैं । परतु, आत्मा को परमात्मा बनाने का रसायन इतना उत्तम है कि उसमे विपत्ति भी सम्पत्ति बन जाती है । यह रसायन अनेक महापुरुपो द्वारा अनुभूत है । इस अनुभूत रसायन के द्वारा ठगे जाने का अणमात्र भी अदेशा नही । इस रसायन के सेवन से आत्मा, परमात्मा । अथवा नर, नारायण बन जाता है । ताम्वे से सोना बनाना तो ठगविद्या है । परतु आत्मा से परमात्मा प्रकटाना सच्ची सद्विद्या है । यही सद्विधा मुक्ति का साधन है । इस सावन द्वारा आत्मा का कल्याण करो । इसी मे मानवजीवन की सिद्धि है।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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