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________________ चौतीसवां बोल-२३५ शक्ति न होने पर भी उपधि का त्याग कर देना उचित नही, ऐसा करने से अनेक अनर्थ उत्पन्न होने की सभावना रहती है । जैसे फोडा मिटने से पहले ही पट्टी उतार देने से फोडे के बढ जाने का, पक जाने का या उसमें कीडे पड जाने का भय रहता है, उसी प्रकार शक्ति न होने पर भी उपधि का त्याग करने से अनेक अनर्थ होने की सभावना रहती है। अतएव उपधि का त्याग करने मे विवेक की आवश्यकता है । अगर शक्ति हो तब तो उपधि का त्याग करना ही चाहिए । अगर शक्ति न हो तो सयम के निर्वाह के लिए उपधि रखना कुछ बुरा नही है । हाँ, उपवि के कारण अभिमान करना तो बुरा ही है । शास्त्र कहता है कि साधुओ को तो ऐसी ऊँची भावना भानी चाहिए कि वह शुभ अवसर कब मिलेगा जब मैं सब प्रकार की उपधि का त्याग कर जिनकल्पी बनकर विचरूगा । जब साधुओं को ऐसी उच्च भावना भाने के लिए कहा गया है तो फिर उपधि रखने के कारण साधुओ को अभिमान क्यो करना चाहिए? उपधि रखकर अभिमान करने से संयम का पोषण करने वाली भी दुर्गति-के मार्ग पर ले जाने वाली वन जाती है । उपधि के त्याग से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने फर्माया-उपधि का त्याग करने वाला भय आदि क्लेश से रहित हो जाता है अर्थात् उसे किसी प्रकार का भय नही रहता । उपधि का त्याग करने से जीवात्मा किस प्रकार निर्भय बनता है, यह बात एक उदाहरण द्वारा समझाई जाती है: मान लो, एक आदमी सोने का हार पहन कर जगल मे गया है और दूसरे आदमी ने सोने का कुछ भी गहना
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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