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________________ २२६-सम्यक्त्वपराक्रम (३) अपने गणसघ का उद्देश्य भी निर्बलो की रक्षा करना है । बहिलकुमार न्याय के पथ पर है। न्यायदष्टि से उसे कोणिक के पास भेज देना उचित नही है। युद्ध करके शरणागत की रक्षा करना ही हम लोगो का कर्तव्य है। गणराजा अपने धर्म का पालन करने के लिए अपने प्राण तक देने पर उतारू हो गये । परन्तु तुम लोग धर्म की रक्षा के लिए कुछ करते हो ? क्या तुम धर्म की रक्षा के लिए थोडा-सा भी स्वार्थ त्याग सकते हो ? स्वार्थ त्याग करने से ही धर्म की रक्षा हो सकती है। गणराजाओ जैसी परिस्थिति अगर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाये तो तुम क्या करोगे ? कदाचित् तुम यही सोचोगे कि - कहा का हार और कहा का हाथी । हमारा उससे क्या लेन-देन है ? मगर क्या यह राजा लोग ऐसा नहीं सोच सकते थे ? वास्तव मे इस प्रकार का विचार करना कायरता का काम है । वोर पुरुष ऐसा तुच्छ विचार नहीं करते । वे दूसगे की रक्षा के लिए सदैव उद्यत रहते हैं । आज तो लोगो मे कायरता व्याप गई है । यह कायरता स्वार्थपूर्ण व्यापार के कारण आई है, मगर लोगो का कहना है कि वह धर्म के कारण पाई है । यह कहना एक गम्भीर भूल है। धर्म के कारण कायरता कदापि नही आ सकती। वीर पुरुष ही धर्म का पालन कर सकते हैं । समस्त गणराजाओ के साथ चेड़ा राजा युद्ध के लिए तैयार हो गया । इधर काणिक राजा भो अपने दसो भाइयो के साथ युद्ध के लिए तैयार हुआ । यद्यपि क.णिक के दस भाई वह सकते थे कि हम सब को राज्य का हिस्सा मिला
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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