SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ -सम्यक्त्वपराक्रम (३) भरने के लिए पूरी सामग्री मिल गई। वह कोणिक के पास जाकर कहने लगी-तुम जिसे भाई-भाई कहकर ऊंचा चढाते थे, उसकी करतूत देख ली न । तुम्हारे भाई को तुम्हारे ऊपर कितना विश्वास है | उसने हार और हाथी नही भेजा। इतना ही नही, कदाचित् तुम जबर्दस्ती हार-हाथी लूट लोगे। इस भय से वह अपने नाना की शरण मे भाग गया है । वहाँ जाने की कोई खबर भी उसने तुम्हारे पास नही भेजी। अब मैं देखती हू कि तुम क्या करते हो और हार तथा हाथी प्राप्त करने के लिए कैसी वीरता दिखाते हो । इस प्रकार की उत्तेजनापूर्ण बाते कहकर पद्मा ने कोणिक को खूब भडकाया । पद्मा की यह वाते सुनकर कोणिक को भी क्रोध आ गया । वह कहने लगा मैं चेडा राजा के पास अभी दूत भेजता हू । अगर चेडा राजा बुद्धिमान् होगा तो बहिलकुमार को हार और हाथी के साथ मेरे पास भेज देगा। कोणिक का दूत राजा चेटक के पास पहुचा । दूत का कथन सुनकर चेटक ने उत्तर मे कहला दिया- मेरे लिए तो कोणिक और वहिलकुमार दोनो सरीखे हैं । परन्तु जैसे कोणिक ने अपने दस भाइयो को राज्य में हिस्सा दिया है उसी प्रकार बहिलकुमार को भी हिस्सा दिया जाये अथवा हार और हाथी रखने का अधिकार उसे दिया जाये । । चेटक का यह उत्तर न्यायदृष्टि से ठीक था । मगर सत्ता के सामने न्याय-अन्याय कौन देखता है ! जिसके हाथ मे सत्ता है, वह तो यही कहता है कि हमारा वाक्य न्याय है और जिधर हम उगली उठावे उधर ही पूर्व दिशा है ।
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy