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________________ तेतीसवां बोल संभोगप्रत्याख्यान विषयसुख से पराङमुख होना भी परमात्मा के प्रति एकनिष्ठा प्रीति का एक उपाय है। जो लोग विषयसुख से पराड मुख हो जाते है, उनके भाव उच्च बनते हैं, उनकी परमात्मप्रीति दृढ होती है और वे सभोग को त्याग करके स्वावलम्वी बनते हैं । अतएव गौतम स्वामी अब यह प्रश्न पूछते है कि सभोग का त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है ? मूलपाठ प्रश्न संभोगपच्चक्खाणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? 1 उत्तर- संभोगपच्चक्खाणं श्रालंबणाई खवेइ, निरालंवणस्स य थायट्टिया जोग भवंति, सएणं लामेणं सतुस्सइ, परस्म लाभ नो प्रासाएइ, नो तक्केइ, नो पीहेड़, नो पत्थे, नो श्रभिलसइ, परस्स लाभं श्रणासाएमाणे प्रतक्केमाणे श्रपीहेमाणे श्रपत्येमाणे श्रणभिलसेमाणे दुच्चं सुहसेज्ज उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥३३॥
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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