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________________ - बत्तीसवां-बोल-१७१, , ससारी जीव विषयो की ओर दौडता रहता है । साधारण कीड़े भी विषयो की तरफ दौडते हैं तो मनुष्य, जिसका इतना अधिक ज्ञानविकास हो चुका है विषयो की ओर दौड़े तो आश्र्चय ही क्या है । यह वात अलग है कि शास्त्रश्रवण यः पठनपाठन करते समय थोड़ी देर के लिए मनुष्य को मति ठीक रहती है, परन्तु ससार के अधिकाग मनुष्यो की गति विषयो की तरफ ही बनी रहती है। महान् त्यागियो का मन भी क्षण भर मे विषयो की ओर आकर्षित हो सकता है । इस प्रकार के विषयो की ओर से जो विमुख रहता है वह महान् विजेता है । दुस्तर नदी को पार करना कठिन है तो फिर विषयवासना रूपी नदी को पार करना तो बहुत कठिन है । अगर कोई मनुष्य पूर आई नदी को पार कर जाये तो वह कितना वडा तैराक कहलाएगा? . . इस विषय मे महाभारत मे एक उदाहरण प्रसिद्ध है। एक बार श्रीकृष्ण अमरकका नगरी के राजा पद्मनाभ को जीतकर लौट रहे थे । पाण्डव भी उनके साथ थे। श्रीकृष्ण ने पाण्डवो, से कहा - तुम लोग -आगे चलो, मैं पीछे आता ह । पाण्डव आगे-आगे चलने लगे । रास्ते मे उन्होने देखा कि गगा नदी मे तेज पूर आ रहा है । उन्होने नाव पर चढकरं गगा नदी पार की और परले पार पहुच गए । उसके बाद उन्होने विचार किया - जिन्होने पद्मनाभ राजा को हराया है वे श्रीकृष्ण महाराज कैसे पराक्रमी हैं और वे गगा को किस प्रकार पार ' करते हैं, “आज इस बात को परीक्षा करनी चाहिए । इस प्रकार विचार कर उन्होने नाव छिपा दी। ' विनाशकाले विपरीत बुद्धिः' इस कहावत के अनुसार पाण्डवो-को उलटी बुद्धि सूझी । र विचार अनुसार पावनागकाले
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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