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________________ अट्ठाईसवां बोल - १०७; कर्मों की प्रेरणा नही करता तो कर्म आत्मा के साथ किस प्रकार लगते हैं ? इस प्रश्न के उतर के लिए एक उदाहरण लीजिए | कल्पना कीजिए, एक घडा तेल से भीगा हुआ है, दूसरा पानी से भीगा है और तीसरा घडा विलकुल कोरा है । रज को ज्ञान नहीं होता कि मैं किस घडे के साथ किस प्रकार लगूं ? फिर भी जो घडा तेल से भीगा है उसमे रज अधिक चिपकेगी। जो घडा पानी से भीगा है उस पर रंज चिपकेगी तो सही, पर तेल के घड़े के बराबर नही । और कोरे घडे पर रज गिरेगी मगर हवा से जैसे गिरेगी वैसे ही हवा से उड भी जाएगी। इसी प्रकार कर्मरज चौदह - राजू लोक मे - सर्वत्र भरी पडी है । परन्तु भावकर्मों मे जितना चिकनापन होगा, उसी के अनुसार कर्म आत्मा के साथ लगेगे । अगर भाव-कर्म मे चिकनापन अधिक होगा तो कम अधिक लगेगे, अगर चिकनापन कम होगा तो कर्मवर्गणा कम चिपकेगी । अगर आत्मा कोरे घड़े के समान भावकर्म के चिकनेपन से रहित होगा तो उसमे राग-द्वेष न होगे तो कर्म चिपकेगे ही नही । - - अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि कर्म की व्यवस्था यदि इस प्रकार की है तो कर्मों को उदय मे आने का और सुख-दुख रूप में परिणत होने का ज्ञान किस प्रकार होता है ? इसका उत्तर यह है कि क्या दवा को ऐसा ज्ञान है कि मैं पेट मे जाकर इस प्रकार फेरफार करूँ ? क्या दूध जानता है कि पेट मे जाकर मैं इस प्रकार रसभाग और खलभाग में परिणत हो जाऊँगा ? ज्ञान न होने पर भी दूध और दवा अपना-अपना गुण बतलाते हैं 1
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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