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________________ अट्ठाईसवां बोल-१०१ हुए कहते हैं--सूत्र को बात गहन है । सूत्र मे किसी जगह अतिदेश द्वारा और किसी जगह साक्षात् रूप से विषय का कथन किया गया है । अर्थात् कोई वात विस्तार से और कोई बात सक्षेप से बतलाई है । ज्ञानीजनो को जहा. जैसा उचित प्रतीत हुआ, उन्होने वहा वैसा ही कथन किया है । ___अतिदेश का साधारणतया अर्थ है - गौण बात कहना। अतिदेश द्वारा कही जाने वाली बात गौण होती है और साक्षात् कही जाने वाली मुख्य । उदाहरणार्थ किसो सेठ ने अपने नौकर से दातौन मगवाया । नौकर ने विचार कियादातौन के साथ पानी भी चाहिए और मुह पौंछने के लिए तौलिया भी चाहिए । इस प्रकार सेठ ने मगवाया तो दातौन ही था, किन्तु गौण रूप से पानी और तौलिया लाने का भी संकेत था । इस प्रकार मुख्य रूप से और कोई बात हो तथा गौण रूप से दूसरी ही बात का सकेत हो, वह अतिदेश कहलाता है । कदाचित् सेठ नौकर से कहे कि मैंने तो सिर्फ दातौन मगवाया था । पानी और तौलिया कहाँ मगवाया था ? तो उत्तर मे नौकर यही कहेगा - मुख्य रूप से तो आपने दातौन हो मगवाया था मगर गौण रूप से पानी और गमछा भी मगवाया था, क्योकि दातीन के साथ पानी और गमछे की भी जरूरत रहती है । । । इसी प्रकार शास्त्र मे तपश्चर्या का फल पूर्वसचित कर्मों का क्षय अर्थात् व्यवदान बतलाया है और व्यवदान के साथ ही अतिदेश द्वारा अक्रियदशा का भी कथन किया गया है। फिर भी व्यवदान के फल के विषय मे पुन. प्रश्न क्यो, किया गया है ? इसका समाधान करते हुए टीकाकार
SR No.010464
Book TitleSamyaktva Parakram 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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