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________________ ८०-सम्यक्त्वपराक्रम (२) जी जी कर बतलावतां, काना क्रोध न आय। आढा टेढा बोलता, खबर खमानी थाय ।। जो निन्दा के भय से डरता नही है, वही क्रोध को जीत सकता है । भक्त तुकाराम' कहते है___ तुका म्हेण झण अवहेलति मम तरी केसीराज रख विति । ___अर्थात- हे प्रभो। जव मुझमें अपनी निन्दा सहन करने की शक्ति आ जायेगी तभी मै तुम्हारा सच्चा भक्त समझा जाऊँगा। इस प्रकार विचार कर भक्तजन निन्दा से भयभीत नही होते, वरन् निन्दा सहन करने के लिए सशक्त और सहनशील बनते हैं । हा, वे नवीन निन्दनीय कार्य नही करते, मगर पहले के निन्दनीय कार्यों के कारण होने वाली निन्दा से घबराते नही । इस प्रकार जो निन्दा से नही, मगर निंदायोग्य कार्यों से ही घबराता है, वही अशुभ योग मे से निकलकर शुभ योग मे प्रवृत्त होता है। अपने दोषो को गुरु के समक्ष प्रकट कर देना गर्दा है। गर्दा किस प्रकार की होनी चाहिए, इस विषय की व्याख्या स्थानागसूत्र में की गई है। गर्हा का स्वरूप बतलाते हुये श्रीस्थानागसूत्र मे, द्वितीय स्थान मे, दो प्रकार की गर्दा बतलाई गई है और तृतीय स्थान मे तीन प्रकार की कही गई है। दूसरे स्थान (ठाणा) में कहा है दुविहे गरिहा पन्नत्ते, तजहा - मणसावेगे गरिहइ, वयसा वेगे गरिहइ, अहवा दुविहे गरिहा पन्नत्ते, तंजहादीहमद्धमेगे गरिहइ, रहसमद्धमेगे गरिहइ । अर्थात- गर्दा दो प्रकार की है-मन से की जाने वाली गहरे और वचन से की जाने वाली गरे । परन्तु दोनो
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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