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________________ छठा बोल-६१ होने के कारण पकड में न आया । यह उसका उपरितन (ऊँचा) स्थान कहलाया । अब कोई अधिक शक्तिमान् तीसरा पुरुष उसे पकडकर पहले पकडने वाले को सौंप दे तो वह पकड में आ गया। यह उसका अध (नीचा) स्थान कहलाया । इसी प्रकार जो कर्म उदय मे नही आते थे, उन्हे पकड़कर अपूर्वकरण गुणश्रेणी उदय मे ले आती है और उन कर्मों मे गुणसक्रमण कर देती है। माम लीजिए- एक जगह लोहा अघर लटका है । वह इतनी ऊँचाई पर है कि आपकी पकड मे नही आता । परन्तु किसी ने खीचकर तुम्हे पकडा दिया । तुमने उसे पकडकर पारसमणि का स्पर्श कराया और वह सोना बन गया इसी प्रकार जो कर्म उदय मे नही आते थे, उन्हे करणगुणश्रेणी उदय मे ले आती है और उनमे गुणसक्रमण कर देती है अर्थात् पाप को भी पुण्य बना देती है । आपके हाथ मे लोहा हो और उसे सोना वनाने का सुयोग मिल जाये तो क्या आप वह सुयोग हाथ से निकलने देंगे? ऐसा सुअवसर कौन चूकेगा ? पारस के सयोग से लोहा, सोना बन जाये तो भी वह आत्मा को वास्तविक शान्ति नही पहुँचा सकता, परन्तु पश्चात्ताप मे यह विशेषता है कि वह लोहे को ऐसा सोना बनाता है जो आत्मा को अपूर्व, अद्भुत, अनिर्वचीय और अक्षय'शान्ति प्रदान करता है। जो पश्चात्ताप पाप को भी भस्म कर डालता है, उसे करने का अवसर मिलने पर भी जो व्यक्ति परजात्ताप न करके पाप का गोपन करता है, उसके विषय मे एक भक्त ने ठीक ही कहा है अवगुण ढाकन काज करूँ जिनमत-क्रिया । तजू न अवगुण-चाल अनादिनी जे प्रिया ।।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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