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________________ २६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) हानिया समझाई । भगवान् का उपदेश सुनकर वह सर्व समझ गये कि निदान करने से हमारी उलटी हानि ही हई है। हमने तुच्छ चीज के लिए धर्मक्रिया का विक्रय कर डाला है, मगर इस निदान के फलस्वरूप वह चीज मिलेगी ही, यह कौन कह सकता है ? उन साधुओ और साध्वियो ने मस्तक झुकाकर भगवान् से कहा 'प्रभु' हमारा उद्धार करो ।' भगवान् बोले- हे श्रमणो । और श्रमणियो ! तुम किसी प्रकार का भय मत करो । आलोचना, निन्दा और गर्दा करके की हुई भूल का प्रायश्चित्त करो ता तूम शुद्ध हो जाओगे।' वे साधु और साध्विया भगवान् के आदेशानुसार आलोचना, निन्दा और गर्दा करके पवित्र हुए। वे साघु और साध्विया तो भगवान् की वाणी सुनकर पवित्र हए थे । आज भी सूत्र के रूप मे भगवान् विद्यमान है या नही ? उनकी वाणी तो आज भी विद्यमान है। अतएव भगवान् की बाणी सुनकर तुम पवित्र बनो और अपराध की आलोचना, निन्दा तया गर्दा करके शुद्धि करो । श्री वृहत्कल्पसूत्र मे कहा हैकयाइं पावाइं जेहि प्रहात वज्जए। . तेसि तित्थयरे वयहिं सुहिं ब्रम्हाण कीरउ । यह गाथा वृहत्त्कल्पसूत्र के भाष्य की है। इसमे कहा हैमोहकर्म के उदय से जो-जो पापकर्म अर्थात् अनर्थ किये हो, मालोचना करने के लिए वह सब निष्कपटभाव से गुरु के
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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