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२५४-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
देकर महान निर्जरा का कार्य कर रहा हूं और मोक्षप्राप्सि
का कार्य कर रहा है। ऐसा समझकर वाचना देने के क यं __ को अपना ही कार्य मानना चाहिए। . . *
वाचना देते समय कितनी सावधानी रखनी चाहिए और क्या समझना चाहिए, यह बात पहले कही जा चुकी है । मगर वाचना लेने वाले को वाचना लेते समय कितनी
सावधानी रखनी उचित है और उस समय 'उमका कर्तव्य ___ क्या है, इस स बन्ध में कहा गया है . -
पर्यस्तिकामवष्टम्भ, तथा पादप्रसारणम ।। वर्जयेद्विकथा हास्यमधीयन् गुरुसन्निधौ ॥
वाचना देने वाले गुरु के सन्निकट वाचना लेने वाले शिष्य को कैसी सावधानी रखनी चाहिए, यह बात इस गाथा मे बतलाई गई है। इसमे कहा है- वाचना देने वाले गुरु के समक्ष शिष्य को अकडकर यो हाथ वध करके नही बैठना चाहिए, पैर फैलाकर नही बैठना चाहिए और विक था तथा हँसी-मजाक नही करना चाहिए । वाचना लेने वाला शिष्य इन सब अवगुणों का परित्याग कर दे । . .
अपने यहा वाचना लेने-देने मे अत्यन्त अन्तर आ गया है । जैसे-आजकल कितनेक लोग ऐसा मानते है कि सिद्धान्त की वाचना देते समय पास मे घी का दीपक होना चाहिए । मगर जब सिद्धान्त से भाव-प्रकाश लेना है तो वहा द्रव्य-प्रकाश की आवश्यक्ता ही क्या है ? इसके अतिरिक्त दीपक जलाना सावध है और शास्त्र निरवद्य है । ऐसी स्थिति मे निरवद्य शास्त्र की वाचना- लेते समय सावध - दीपक की क्या आवश्यकता है ? शास्त्र भावरूप वातु है ।