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________________ २५२- सम्यक्त्वपराक्रम (२) देकर सूत्र की अनासातना और मृजना करने वाला तीर्थधर्म का पालन करत है। यहाँ तोय पम का मतलब गणवर के आचार से है । सूत्र का कथन तीर्थ दूर करते हैं मगर तदनुसार सूत्र की रचना करने वाले ओर उसकी परम्परा चलाने वाले गगधर हैं । जिस प्रकार गण वर सूत्रो को परपरा चलाते है उसी प्रकार वाचना देने वाला भो सूत्रो का परम्परा चालू रखता है। इस कारण वह ग गवर के अचार का अवलवन करता है - गणवर का कार्य करता है। गणवरो ने सूत्र की रचना की अगर वह सूत्र अपने 'ही पास रम्ब छाडन और दूसरो को वाचना न देते तो क्या आज सूत्र विद्यमान रहते ? मगर गणधर कितने उदार थे। उन्होने सूत्रो का रचना की अपने पास नहीं रख छोडा, अपितु शिष्यो को उनकी वाचना दो गणवरो द्वारा चलाई हुई वाचना की पद्धति का पालन आच यं भी करते रहे और इसी के फलस्वरूप आज हमारे लिए सूत्र उपलब्ध है। अगर आगे इस पद्धति का पालन न किया जाये तो सूत्र का उच्छेद हो जायेगा । अतएव अपने पास जो मूत्र हैं उनकी वाचना योग्य शिष्य को देनी चाहिए । सूत्र की वाचना देना भी तीथधर्म है । अर्थात् वाचना देना गणधर के वर्म का अपलबन करना है। कल्पना कीजिए, एक नई मोटर तैयार कराई गई है, मगर उसे चलाने वाला कोई इ इवर नही है । अगर कोई मोटर न चला मकने वाला उम चलाने का प्रयत्न करेगा तो सम्भव है वह किसी गड्ढे में गिरा देगा । इसी कारण मोटर चलाना न जानने वाले को सरकार मोटर चलाने की आजा नही देती । मोटर का तो दृष्टान्त ही समझिए ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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