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________________ पांचवां बोल - १७ ओर शील का पालन किया जाये तो कल्याण आपकी मुठ्ठी में ही है । सत्य, शील और परमात्मा की प्रार्थना के विषय में अन्यत्र विवेचन किया गया है । अब यह विचार करना है कि, इसका फल कैसा होता है और वह किसे प्राप्त होता है ? तीखी तलवार का फूल के समान कोमल हो जाना, विष का अमृत हो जाना और जान माल को हानि पहुँचाने वाले शत्रु का अपने आप झक जाना, यह सब फल मिलता हो तो किसे खराब लगेगा? ऐसे फल की आशा तो सभी करते हैं, मगर अपने कामो की तरफ कोई आंख उठाकर भी नही देखता । प्राचीन काल मे मुनियों की गोदी मे सिंह और साप भी लोटते थे, ऐसा सुना जाता है । भगवान् की धर्मपरिषद् मे, भगवान् का उपदेश सुनने के लिए सिह और बकरी एक साथ वैठते थे । किसी को किसी से भय नही था । अगर आज सिह आये तो आप लोग उसके आने से पहले ही भाग जाएँगे । 1 इस प्रकार की कायरता रख कर भी आप ऐसा फल चाहते हैं, जो मुनियो की भी कल्पना में न आया हो । कार्य न करना और फल चाहना तो जादू के फल चाहने के समान है | अगर आप जादुई फल न चाहते हो तो आपको सत्कार्य करना चाहिए | सत्कार्य करने के साथ भावना ऐसी रखनी चाहिए कि फल मिले या न मिले मुझे कर्त्तव्य करना ही चाहिए । मगर जैसे चोर धधा किये बिना ही धन चाहता है, इसी प्रकार लोग कार्य किये बिना ही फल चाहते हैं । क्या आपको चोर की नाति पसन्द है ? अगर पसन्द नही है तो कार्य किये बिना फल की प्राशा करने की नीति क्या अच्छी है ? कार्य करोगे तो उसका फल मिलेगा ही । प्रत
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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