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________________ २४६ - सम्यक्त्वपराक्रम (२) जब व्यग्र हो जाता है तब व्यग्रता दूर करने के लिए बाग का आश्रय लेता है । इसी प्रकार ससार के प्रपचों से घबराने वाला स्वाध्याय का ही शरण लेगा और फिर दूसरे प्रपचो में नही पडेगा । अगर आप व्यर्थ के प्रपचों में पडना छोड़ स्वाध्याय का आनन्द ले तो आपको मालूम हो कि स्वाध्याय मे कैसा आनन्द है । पुरुषो की अपेक्षा बहिनों को इस ओर अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योकि उनकी प्रादत व्यर्थ के प्रपचो मे पडने की ज्यादा होती है, ऐसा देखा जाता है | वहिने अगर ऐसे प्रपंचो में पड़ना छोड़ दें तो वै पुरुषो का भी सुधार कर सकती हैं । अतएव वहिनें सांसारिक प्रपचो में न पड़कर परमात्मा के भजन रूप स्वाध्याय से आनन्दित रहे तो वे अपना और पराया अकल्याण रोक सकती हैं और कल्याण मार्ग में प्रवृत्त हो सकती हैं ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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