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________________ ‘१९२-सम्यक्त्वपरात्रम (२) अतएव सच्चे हृदय मे, निष्कपटभाव से प्रार्थना या स्तुति करनी चाहिए । परमात्मा की प्रार्थना किस प्रकार करना चाहिए ? इसके लिए कहा गया है : धर्मजिनेश्वर मुझ हिवड़े बसो, प्यारा प्राण समान, कवह न विसरू चितारू नहीं, सदा प्रखडित ध्यान, ज्यों पनिहारी कुभ न वीसरे, नटवो वृत्तनिदान, पलक न वोसरे पदमणी पियु भणी, चकवी न वीसरे भान । पनिहारिने मस्तक पर खेप रखकर बाते करती चली जाती है। पर क्या वे वाते करते समय खेप को भूल जाती है ? नट बाँस पर खेल करता है परन्तु क्या वह अपने शरीर का समतुलन भूल जाता है ? पतिव्रता स्त्री अन्यान्य कार्यो मे प्रवृत्त होने पर भी अथवा सकट में पड़ने पर भी क्या - अपने पति को भूल जाती है ? सीता, द्रौपदी, दमयन्ती आदि सतियाँ घोर कष्टो मे पडकर भी अपने पति को विसरी नही थी । सच्ची स्त्री अपने पति को कदापि नही भूल सकती और न अन्य पुरुप को अपने हृदय मे स्थान दे सकती है। इसी प्रकार सच्चा पति भी परस्त्री को अपने हृदय मे स्थान नही दे सकता। सुना है कि गाधीजी ने अपनी पत्नी करतूरवा को उनकी बीमारी के समय एक पत्र लिखा था कि मैं कार्य मे अत्यन्त व्यस्त होने के कारण, बीमारी के समय भी तुम्हारे पास उपस्थित नही हो सकता । लेकिन मैं तम्हे विश्वास दिलाता हू कि कदाचित् तुम्हारो मृत्यु हो जायेगी तो मैं कदापि दूसरी पत्नी नही करूँगा । इस प्रकार मैं तुम्हारी मृत्यु का स्वागत करूँगा और अपने मे किसी प्रकार की उदासीनता नहीं आने दूगा ।'
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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