SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदहवाँ बोल-१८५ मान लीजिए, किसी मनुष्य को लाख रुपये मिले और किसी मनुष्य को बुद्धि मिली । अब इन दोनो में से कौन बडा कहलाएगा ? आज तो यह कहावत प्रचलित है कि बुद्धिमान् लखपति के यहा विद्वान् पानो भरते हैं । अर्थात् विद्वान भी लखपति की नौकरी करते हैं । किन्तु नौकरी करने के कारण विद्वानो की बुद्धि का अनादर नही हो सकता । अगर कोई अजानी किसी वस्तु का अनादर करता है तो उससे उस वस्तु का महत्व नहीं घट जाता । अगर बन्दरो की टोली में एक आदमी एक मुठ्ठी वेर और एक मुट्ठी हीरे फेंके तो बन्दर हीरे छोडकर वेर ही लेगे। बन्दर हीरे का महत्व नही , जानते. इस कारण हीरे नही लेते । मगर इसी कारण हीरा का महत्व और उसका मूल्य क्या कम हो जाता है ? इसी प्रकार जो लोग ससार की कामना मे फंसे हैं, वे स्तव द्वारा भी सामारिक कामना ही पूरी करना चाहते हैं । इसी तरह वे भावस्तव का महत्व नहीं जानते किन्तु इस कारण भावस्तव का महत्व कुछ कम नही हो जाता। यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है और वह यह है कि स्तव के साथ स्तुति शब्द का सम्बन्ध किस उद्देश्य से जोडा गया है ? जव स्तव किया जाता है तो उसके साथ स्तुति करने की क्या आवश्यकता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि सभी लोग स्तव नही कर सकते, मगर कल्याण सभी चाहते हैं । ज्ञानीजन यह चाहते हैं कि सभी का कल्याण हो, इसीलिए स्तुति के विपय में पूछा गया है । स्तव तो शक्रेन्द्र द्वारा किया जाता है परन्तु स्तुति एक श्लोक से लेकर सात श्लोक तक और सस्कृत, प्राकृत
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy