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________________ तेरहवां बोल-१७७ साधक नहीं होता । वही प्रत्याख्यान मोक्ष का साधक हो सकता है जो वीतराग भगवान द्वारा उपदिष्ट हो और जो भावपूर्वक किया जाये । जो राग और द्वेष से अतीत हो चुके हैं वे वीतराग भगवान् जिस प्रत्याख्यान का उपदेश देते हैं, वह मोक्ष के लिए ही हो सकता है । वीतराग भगवान् द्वारा उपदिष्ट. उस प्रत्याख्यान 'के आधार पर अनत जीव मोक्ष प्राप्त कर चुके है,१ करते है और करेंगे तथा शाश्वत सुख प्राप्त किया है, प्राप्त करते हैं और प्राप्त करेंगे। इस प्रकार प्रत्याख्यान मोक्ष का एक अग माना गया है और इसमे स्पष्ट है कि वह आस्रवो का निरोध करने के साथ ही पूर्वकृत पापों को भी नष्ट करता है । इसके अतिरिक्त पूर्ण प्रत्याख्यान करने वाले को चारित्रशील कहा है और चारित्र का अर्थ पूर्वकृत, कर्मों को नष्ट करना होता है । इस कथन से भी यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्रत्याख्यान आस्रवद्वारो का निरोध करने के साथ ही पूर्वकृत कर्मों को भी नष्ट करता है । प्रत्याख्यान से जीव को क्या लाभ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है प्रत्याख्यान से आस्रवद्वार वन्द होता है और इच्छा का निरोध होता है। इच्छा का निरोध प्रत्याख्यान करने से होता है अतः राग द्वेष भी नही होता । प्रत्याख्यान से किस प्रकार इच्छा का निरोध । होता है यह बात एक उदाहरण द्वारा समझाई जाती है । कल्पना कीजिए, किसी मनुष्य ने आम खाने का प्रत्याख्यान किया । आम खाने का त्याग करने के पश्चात् जगत् में आम है या नहीं, इस वर्ष आम की फसल कैसी आई है, आम किस भाव बिकते है, ऐसी बातो का वह कोई
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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