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________________ १५०-सम्यक्त्वपराक्रम (२) जीभ करे फजहीत जीभ जता दिलवावे, जोभ नरक ले जाय जीभ बैकुठ पठावे ॥ अदल तराजू जीभ है, गुण अवगुण दोउ तोलिये । वैताल कहे विक्रम ! सुनो, जीभ संभालकर बोलिये ।। __ इस प्रकार जीभ से भलाई भी होती है और बुराई भी होती है । अतएव बोलने में विवेक रखना चाहिए । अगर विवेक न रह सकता हो तो उस दशा मे मौन रहना ही श्रेयस्कर है । कहा भी है-'मौन मूर्खस्य भूषणम्' अर्थात् मूर्ख पुरुप के लिए मौन ही भूषण है ।। कतिपय लोग वाणी का दुरुपयोग ऐसा करते हैं कि वह उनकी भी अप्रतिष्ठा का कारण बनती है और दूसरो को भी उससे बुरा लगता है । अतएव बोलने मे बहुत ही विवेक रखना चाहिए। वाणी का बड़ा महत्व है । उपनिषद् में कहा है- भोजन का सार भाग वाणी को ही मिलता है। इस प्रकार वाणी मे शरीर की प्रधान शक्ति रहती है। वाणी की जितनी रक्षा की जाये उतना ही लाभ है । थोडी देर बोलने मे तुम्हे कितना श्रम मालूम होता है ! इसका कारण यही है कि बोलने से शरीर की प्रधान शक्ति का व्यय होता है । वैज्ञानिको के कथनानुसार जीभ मे तोप से भी अधिक शक्ति है। इसलिए बोलने मे विवेक की बडी आवश्यकता है। इसी प्रकार एषणासमिति और आदान-निक्षेपणसमिति मे भी ध्यान रखना आवश्यक है और इसी प्रकार पाचवी समिनि मे भी विवेक रखना चाहिए । कोई भी चीज ऐसी जगह नही रखना चाहिए और न फैकना चाहिए, जिससे देखने वाले को घृणा हो या गन्दगी का आभास हो । यहा
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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