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________________ ग्यारहवां बोल-१४५ के समान हैं। अत उन्हें अपने व्रतो की सदैव सार-सभाल रखनी चाहिए और व्रतों मे पडे हुए छिद्रो को प्रतिक्रमण द्वारा साधते रहना चाहिए । आप अपने कपडो मे जब छेद पडा देखते हैं तो उसे साध कर बन्द कर देते हैं, तो फिर व्रतो मे पडे हुए छिद्रो को बन्द करने में कौन बुद्धिमान् पुरुष विलम्ब करेगा? जो बुद्धिमान् होगा और जो अपनो आत्मा का कल्याण करना चाहता होगा वह अपने व्रतो मे पडे हुए छिद्रो को प्रतिक्रमण द्वारा तत्काल बन्द कर देगा । नौका मे छेद हो गया हो और उस छेद के रास्ते नौका में पानी भर रहा हो तो क्या कोई बुद्धिमान पुरुष उस छेद का बना रहने देगा ? छेद बन्द न किया तो उसके द्वारा नौका में पानी भर जायेगा और परिणाम यह होगा कि नौका डूब जायेगी। इसी प्रकार अगर व्रतो मे हुए छिद्र वन्द न कर दिये जाएँ तो आस्रव रूपी पानी भरे बिना नहीं रहेगा और फलस्वरूप व्रतरूपी नौका डूब जायेगी । अतएव जैसे मकान में से पानी न टपकने देने का खयाल रखा जाता है, उसी प्रकार अपने व्रतो को भी सभाल रखनी चाहिए । जब कमी व्रतो में छिद्र दिखाई द' तो उसे तत्काल बन्द कर देना चाहिए । मल्ल कुश्ती लड़ने के बाद और वीर योद्धा युद्ध करने के बाद, सध्या समय अपनी शुश्रूषा करने वाले को बतला देता है कि आज सारे दिन मे मुझे अमुक जगह चोट लगी है और अमुक जगह मुझे दर्द हो रहा है। जब मल्ल या योद्धा अपना दर्द बता देता है तो शुश्रूषा करने वाला सेवक औपध या मालिश द्वारा उस दर्द को मिटा देता है और दूसरे दिन मल्ल कुश्ती करने के लिए और योद्धा युद्ध
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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