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________________ ग्यारहवां बोल-१४१ ही नही, चाय द्वारा आजकल सत्कार किया जाता है और कदाचित कोई उस सत्कार को स्वीकार न करे तो सत्कारकर्ता अपना अपमान मानता है । इस प्रकार के अनेक हानिकर खान-पान अपना लिये गये है। चाय किसी दूसरे देश मे लाभकारक भले ही हो किन्तु भारत जैसे गर्म देश मे, चाय जैसी गर्म वस्तु पेट मे डालना, जानबूझकर स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने के समान और रोग को आमत्रित करने के समान है । इस प्रकार अनेक हानिया उत्पन्न करने वाली चाय जीभ की लोलुपता को पुष्ट करने के लिए पियी जाती है या और किसी प्रयोजन से ? चाय की ही भाँति बीडी-सिगरेट आदि हानिकारक पदार्थ भी जीभ के स्वाद के लिए ही काम मे लाये जाते है । न जाने बीडी-सिगरेट मे ऐसा क्या स्वाद है कि पीने वाले उनका पिड नही छोडते । पेट मे घुसने वाला धुमा क्या स्वाद देता है ? यद्यपि वीडी-सिगरेट मे कोई सुस्वाद नही है फिर भी छोटे-छोटे बालक तक बीडी पीते हैं ! उन बालको को किसी न किसी रूप मे बडे-बूढे ही बीड़ी पीना सिखलाते हैं । वडे-बूढे जिस बीडी को पीकर फैक देते हैं, उसी को बालक उठा लेते है और पीने लगते हैं। धीरे-धीरे वह पीना सीख जाते है। इस प्रकार केवल शौक के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिससे इहलोक की भी हानि होती है और परलोक की भी हानि होती है। प्राचीनकाल में इस प्रकार के पाप नही होते थे, अतः सीघा कदमूल और रात्रिभोजन-त्याग वगैरह का उपदेश दिया जाता था। लेकिन आजकल तो बहुतेरे नवीन पाप उत्पन्न हो गये हैं । ऐसी
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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