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________________ दसवां बोल-१३३ पहले देव ने कामदेव को कष्ट दिये थे किन्तु अन्त मे देव को ही दृढधर्मी कामदेव के आगे झुकना पड़ा था । आप भी ऐसी ही धर्मदृढता धारण करे। ढीले बने रहने से काम नही चलता । धर्म मे अटल श्रद्धा और दृढता धारण करने से ही कल्याण हो सकता है। मन, वचन और काय की शुद्धि किस प्रकार की जा सकती है, यह बताने के लिए वन्दना का प्रकरण चल रहा है । वन्दना के प्रताप से आत्मा के अनेक विकार दूर हो जाते हैं और विकार दूर हो जाने पर मन, वचन और काय को शुद्धि होती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। अतएव अगर आप पूर्ण आत्मशाति प्राप्त करना चाहते हैं और सुभागी बनना चाहते हैं तो गुरु को विधिपूर्वक वदना करके ऐसा समझो कि यह सब गुरु के चरणो का ही प्रताप है । व्यवहार मे तो कहते ही हो कि यह सब गुरुचरणो का प्रताप है लेकिन हृदय मे भी यही कहो और गुरु को विधिपूर्वक वन्दना करो । साधारणतया साधुजन प्रत्येक बात उपदेश रूप मे ही कहते हैं-आदेश रूप मे नही । फिर आज 'आपको जो कुछ भी शुभ सयोग मिला है, वह किसी महात्मा की कृपा से ही मिला है। यह बात ध्यान में रखकर गुरु को विधिपूर्वक वन्दना करोगे तो आत्मा को पूर्ण गाति प्राप्त होगी और आत्मकल्याण होगा ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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