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________________ (c) : दसवाँ बोल अर्थात-हे पूज्य | अपनी ऊँची काया द्वारा आपकी नीची काया का स्पर्श करते समय आपको जो कुछ क्लेश हुआ हो, मेरा वह अपराध. क्षमा कीजिए। - - - . * यह कैसी सूचना दी गई है ? इस क्षमायाचना से इसे रहस्य का ज्ञान होता है कि जब गुरु के चरणस्पर्श करने में भी गुरु को कष्ट न पहुँचने जैसी सूक्ष्म बात' का ध्यान रखा जाता है तो फिर दूसरे प्रकार का कष्ट न होने के विर्षय में, कितना ध्यान रखना चाहिए ! जिस घर मे एक कौडी 'भी वृथा खर्च नहीं की जाती, उस घर मे 'रुपया-पैसा वृथा खर्च कैसे किया जा सकता है ? इसी प्रकार जहा चरणस्पर्श करने, मे भी कष्ट न पहुँचाने का ध्यान रखा जाता है और इतनी सूक्ष्म बात के लिए भी क्षमायाचना की जाती है, वहा अन्य बातों पर क्यो नही ध्यान दिया जाता होगा? मगर इसकी यह अर्थ नही लगाना चाहिए. कि गुरु को कष्ट होने का विचार करके उनके चरणो का स्पर्श ही न किया जाये । एक कौडी भी वृथा खर्च न करना ठीक हो सकता है किन्तु आवश्यकता पड़ने पर भी खर्च न कहना कृपणता है। इसी प्रकार गुरु को कष्ट न हो, इस बात का ध्यान रखना तो उचित है मगर उन्हे कष्ट, होने के विचार से चरणो का स्पर्श ही न करना अनुचित है। गुरु को कष्ट हो, इस प्रकार से उनके चरणो का स्पर्श करना यद्यपि अनुचित है, फिर भी चरणस्पर्श किया जाता है और ऐसा करने मे किसी अश में, गुरु को कष्ट पहुच जाना शक्य और सम्भव है, इसी कारण यह कहा गया है कि-हे गुरु ! आपके चरणो का स्पर्श करने में आपको जो कोई कष्ट हुआ हो, उसके लिए क्षमा कीजिए । आप क्षमासागर हैं, अत मेरा अपराध भी
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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