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________________ __११६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) की प्रार्थना न कर सके परन्तु वन्दना तो सभी कर सकते है । अत. शास्त्र मे वन्दना के फल के विषय में प्रश्न किया गया है। वदि' धातू से वन्दना शब्द बना है । वदन शब्द का अर्थ अभिवादन करना भी होता है और स्तुति करना भी होता है । वदना कब करना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर में यह क्रम है कि सर्वप्रथम सामायिक करना चाहिए अर्थात् पहला सामायिक आवश्यक है, तत्पश्चात् चौवीस जिनस्तवन आवश्यक है और फिर वन्दन आवश्यक है । वदना करने की भी विधि है। वन्दना किस प्रकार करना चाहिए, इस विषय पर शास्त्रकारो ने बहुत प्रकाश डाला है । आज तो वन्दना करने की विधि मे भी न्यूनता नजर आती है, मगर शास्त्रीय वर्णनो से प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल मे विधिपूर्वक ही वन्दना की जाती थी और इसी कारण वन्दना के फल के सम्बन्ध मे भगवान् से प्रश्न किया गया है । भगवान् ने वन्दना आवश्यक का बहुत फल प्रकट किया है । वदना के २५' आवश्यक बतलाये गये है। वह पच्चीस आवश्यक कहा है, इस विषय में कहा है . - दुयो णय अहाजायं कीयकम्मं बारसावस्सय होई । चउ सीर तिगुत्तं च, दुप्पवेसं एग निक्खमणं ।। वन्दना के पच्चीस आवश्यको का निरूपण इस प्रकार किया गया है-दो वार नमन कीतिकर्म अर्थात् वन्दना आवश्यक, एक यथाजात आवश्यक, बारह आवर्तन आवश्यक, चार मस्तक-नमन के प्रावश्यक, तीन गुप्ति धारण करना आवश्यक, दो बार गुरु के अभिग्रह मे प्रवेश करना आवश्यक और एक वार गुरु के अभिग्रह मे से निकलना, आवश्यक ।
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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