SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठवां बोल-१०३ है। परमात्मा की प्रार्थना करना निरवद्य कार्य है । यह निरवद्य कार्य सावध योग का त्याग करने के लिए आलम्वनभूत है। सावध योग से निवृत्त होने की इच्छा करने वाले को विचार करना चाहिए कि मुझे सावंद्य योग से निवृत्त होने का उपदेश किसने दिया है ? अगर तीर्थङ्कर भगवान ने यह उपदेश न दिया होता तो कौन जाने, सावध योग से निवृत्त होने की बात भी सुनाई देती या नही. ? ऐसी अवस्था मे जिन्होने सावध योग से निवृत्त होने का उपदेश दिया है, उन चौवीस तीर्थडसे'की 'प्रार्थना-स्तुति करना आवश्यक है । सावध योग से निवृत्त होने के लिए यह एक आलम्बन है। चौवीस. तीर्थनारो की स्तुति करने से क्या लाभ होता है, इस प्रश्न का उत्तर अगले बोल मे दिया जायेगा । ....
SR No.010463
Book TitleSamyaktva Parakram 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
PublisherJawahar Sahitya Samiti Bhinasar
Publication Year1972
Total Pages307
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy